शीत-निद्रा योग: Sheet Nindra Yoga: मंगल ग्रह के अभियान में कारगर

योग की ऐसी अवस्था के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं जिसे शीत निंद्रा योग (Sheet Nindra Yoga) कहा जाता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि  प्राचीन समय से हमारी संस्कृति में ऋषि-मुनियों ने शीत निंद्रा योग (Sheet Nindra Yoga) के जरिए सैकड़ों साल तक स्वयं को सुप्त अवस्था में रहकर हिमालय की गुफाओं में योग साधना करते थे। शीत निंद्रा योग (Sheet Nindra Yoga) के बारे में पूरी जानकारी हासिल करें किस तरीके से मंगल ग्रह के अभियान में  यह  लाभकारी हो सकता है।

भिक्षुओं द्वारा योग साधना अंतरिक्ष यात्रियों को सिखाने के प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है। यह प्रयोग की जाने वाली शीत-निद्रा मंगल ग्रह जैसे मिशन के लिए जरूरी माना जा रहा है। शीत-निद्रा योग के माध्यम से  शरीर के मेटाबॉलिज्म प्रक्रिया बहुत धीमी हो जाती है जिससे शरीर कोमा की अवस्था में पहुंच जाता है। इस अवस्था यानी साधना में लीन हो जाने पर चिकित्सीय रूप में मृत घोषित कर दिया जाता है।  इस अवस्था में शरीर जीवित रहता है परंतु गहरी निंद्रा की अवस्था में चला जाता है। इस अवस्था से निकलने के बाद इंसान पुनः सामान्य हो जाता है।

हाइबरनेशन का मतलब शीत निंद्रा (Sheet Nindra) 

 हमारे ऋषि-मुनियों और बौद्ध भिक्षुओं ने हजारों साल पहले इस अवस्था के बारे में जानकारी हासिल करके योग के माध्यम से शीत निंद्रा योग का विकास किया है। हाइबरनेशन की अवस्था की स्थिति में कई जी प्राकृतिक तौर पर चले जाते हैं पूरे हैं, जैसे-

 ध्रुवीय भालू, कछुए, मेंढक और सांप, यह सर्दियों में जमीन के नीचे स्वयं को छुपा लेते हैं और शीत निंद्रा ले चले जाते हैं।  

पर्याप्त मात्रा में शरीर में चर्बी के रूप में भोजन होता है और 3 से 4 महीने तक यह लगातार अपने शरीर की गतिविधियों को लगभग शून्य करके एक लंबी नींद में चले जाते हैं। लंबी नींद में जाने की अवस्था शीत निंद्रा कहलाती है। 

ऐसे जीव जंतु शीत निंद्रा में इसलिए चले जाते हैं, विषम परिस्थितियों में उन्हें 3 से 4 महीने जीने के लिए सही भोजन प्रकृति में उस समय उपलब्ध नहीं रहता है इसलिए वे शीत निंद्रा का सहारा लेते हैं और स्वयं के मेटाबॉलिज्म प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। इसी शीत निंद्रा का ज्ञान और इसकी टेक्निक  शीत निंद्रा योग के माध्यम से देखने को मिलता है।

शीत निंद्रा की अवस्था क्या है?

 ऐसे कई जीव जंतु हैं जो  शरीर में जमा अपनी चर्बी और पोषक तत्वों से जमीन के अंदर 3 से 4 महीने में खुद को कोमा की अवस्था में रखकर  अपने शारीरिक मेटाबॉलिज्म  को शिथिल कर लेते हैं,  इस अवस्था को शीत निंद्रा कहा जाता है।

 शीत निंद्रा की अवस्था  बेहोशी या कोमा की जैसी अवस्था होती है, शरीर के आंतरिक अंग बहुत धीमी गति से क्रिया करते हैं, और समय अनुकूल होने पर ऐसे जीव- जंतु फिर से अपना स्वस्थ जीवन जीने लगते हैं। 

आपने सुना होगा कि प्राचीन समय में हिमालय में कई ऐसे योगी महान पुरुष समाधि की अवस्था में कई वर्षों तक वहीं विराजमान रहते हैं। असल में वह एक लंबी समाधि की अवस्था (जिसे शीत निंद्रा कहते हैं।) में रहते हैं। 

उनकी योग साधना शीत निंद्रा योगसाधना कहा जाता है।  जो पद्धति में प्राणायाम करते समय सांसों के खास उतार-चढ़ाव और अपने स्थान से की गति को धीरे-धीरे योग के माध्यम से कम करने की प्रणाली के बारे में जरूर जानते होंगे। योग निद्रा योग की ऐसी प्रणाली है, जो शारीरिक गतिविधियों को मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से कम कर देती है, जिस कारण से व्यक्ति निंद्रा की अवस्था में चला जाता है, और जब चाहे तो इस अवस्था से सामान्य स्थिति में आ सकता है।

साधक शीत निंद्रा योग के अंतर्गत निम्नलिखित स्थितियों से गुजरता है

  • भारत की योग और प्राणायाम की प्राचीन परंपरा के अंतर्गत अवस्थाएं होती हैं, जैसे योग निंद्रा, प्राणायाम, ध्यान और समाधि।
  • योग निंद्रा के अंतर्गत से इंसान अपनी  मस्तिष्क की गतिविधियों को और सफल क्रिया के माध्यम से सांस लेने की गति को शिथिल कर देता है।  वैचारिक सोच थी धीरे-धीरे शिथिल पड़ जाती है।
  • विचारों का शिथिल होने से उसका मन उत्तेजित नहीं होता है।
  • योग निद्रा से गहरी अवस्था शीत निंद्रा की होती है। जिसमें इंसान अपनी सुध- बुध और चेतना को इतना ही कम कर देता है कि उसकी श्वसन क्रिया और आंतरिक अंग बहुत धीमी गति से चलते हैं, जिस कारण से मेडिकल साइंस भी धोखा खा जाता है और उसे मृत बताता है। जबकि शीत निंद्रा की अवस्था में वह साधक अपने समय और शारीरिक उपापचय क्रिया (metabolism) को शिथिल कर देता है, इस कारण से वह गहरी निंद्रा की अवस्था में होता है। इस कारण से  साधक  मानसिक एवं शारीरिक रूप से  उसकी क्रियाएं धीमी हो जाती है। 

प्रश्न उठता है क्या मनुष्य प्राकृतिक रूप से शीत निंद्रा की अवस्था को हासिल कर सकता है? 

दोस्तों जैसा कि हमने बताया कि कुछ जीव जंतु जैसे   मेंढक,  बर्फ में रहने वाले भालू  इत्यादि  शीत निंद्रा की अवस्था में स्वयं को  प्राकृतिक तौर में ले जाते हैं। परंतु मनुष्य प्राकृतिक रूप से शीत निंद्रा में नहीं जा सकता है। उसे योग साधना के माध्यम से  शीत निंद्रा की अवस्था,  जिसे समाधि की अवस्था भी कहते हैं, उसे वह योग के माध्यम से ही प्राप्त कर सकता है।

योग शीत निंद्रा  के जरिए आसान होगी मंगल की अंतरिक्ष यात्रा 

दोस्तों एक खबर के मुताबिक बौद्ध भिक्षु रूस के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों  शीत निंद्रा की सुप्त अवस्था पाने की टेक्निक सिखा रहे हैं।

  अंतरिक्ष की लंबी यात्रा के दौरान  अंतरिक्ष वैज्ञानिक बिना खाए हुए स्वयं को अर्ध-सुप्तावस्था या शीत-निद्रा  की अवस्था में रख सके। अंतरिक्ष मिशन के लिए शीत निंद्रा की अवस्था एक कारगर अवस्था है, क्योंकि मंगल ग्रह पर पहुंचने के लिए इंसान को काफी समय अंतरिक्ष यान में बिताना पड़ेगा। ऐसे में वह सुप्त अवस्था में यानी शीत निंद्रा योग की अवस्था हासिल कर लेता है, आराम करना नींद भोजन इत्यादि की समस्या का समाधान मिल जाएगा। यह लंबी दूरी का सफर शीत निंद्रा अवस्था में दूर हो जाएगा। जब अंतरिक्ष यात्री मंगल ग्रह की सतह पर पहुंचेगा तो वह पुनः अपने समान अवस्था में आ जाएगा। 

मंगल अभियान के लिए इंसानों को भेजे जाने में आने वाले सफर में ऊर्जा और खाने आदि की दिक्कत को दूर करने के लिए योग निंद्रा अवस्था कारगर साबित हो सकता है, इसी वजह से  भिक्षुओं द्वारा योग साधना में प्रयोग की जाने वाली शीत-निद्रा मंगल जैसे मिशन के लिए  आवश्यक मानी जा रही है। 

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